ऑरकुट पर
सोलह साल की एक लड़की
बारिश में भीगती हुई खिलखिला रही है
जैसे खिलखिलाती है बारिश में लबालब भरी कोई नदी
की पैड पर अंगुलियों के हल्के से स्पर्श से
रोमांच से भर उठती है उसकी एकाकी दुनिया
भूल जाती है वह
कि ढेरों पानी बह चुका है उसके ऊपर से
भूल जाती है वह कि उसके प्रोफइल में लगा फोटो
उसके यथार्थ से जरा भी मेल नहीं खाता
वह दुबारा लौटती है समय में
इस बार वह जीती है अपनी जिन्दगी अपनी तरह से
वह नित नए दोस्त बनाती है
बहसें करती है/रूठती है/मटकती है
नए-नए रागों और फलसफों से महमहाती हुई
करती है प्रेम ऑरकुट पर
वह नहीं है गुजरे वक्त की औरत एक
यौवन की चढ़ाई चढ़ कबकी नीचे उतर चुकी
नानी-दादी बनने की क्यू में लगी हुई
वह लेती है भरपूर अंगडाई
और अपने रूप पर स्वयं मोहित हो जाती है
आईने को अंगूठा दिखाती हुई ऑरकुट पर
वह सोलह साल की एक लड़की है
बारिश में भीगती हुई जैसे भीगती है बारिश में धूप
('कादम्बिनी' सितम्बर, २००९ में प्रकाशित)
आपकी इस कविता से भींनी भींनी खुशबू आ रही है । पढ़कर अच्छा लगा । आभार
ReplyDeleteइस बार वह जीती है अपनी जिन्दगी अपनी तरह से
ReplyDeleteवह नित नए दोस्त बनाती है
बहसें करती है/रूठती है/मटकती है
नए-नए रागों और फलसफों से महमहाती हुई
करती है प्रेम ऑरकुट पर
वह नहीं है गुजरे वक्त की औरत एक
यौवन की चढ़ाई चढ़ कबकी नीचे उतर चुकी
नानी-दादी बनने की क्यू में लगी हुई
वह लेती है भरपूर अंगडाई
और अपने रूप पर स्वयं मोहित हो जाती है
nice
बहुत उम्दा कविता है १
ReplyDeletevertual duniya ki asali ladaki.wah kya kahane.
ReplyDeleteबहुत अच्छा है। ब्लाग जगत मैं स्वागतम्।
ReplyDeleteस्वागत और शुभकामनाये , अन्य ब्लॉगों को भी पढ़े और अपने सुन्दर विचारों से सराहें भी
ReplyDeletevery good poem has written you . you welcomes in my heart. bcz its very nice presentation by you.
ReplyDeletebahut achchi rachna.
ReplyDeleteKIRAN JI AAPKI YE RACHNA BAHUT PRIY LAGI ... AAJ KI KAVITAON KO PADTE HUE LAGTA HAI KAHIN BHEETAR HI BHEETAR EK BYAR CHAL RAHI HAI .. LADKIYAN GULAMI KO SAMAJH RAHI HAIN USKE SANDARBHON KO DEKH RAHI HAIN .. EK SWATANTR CHETA SAMAJ KE LIYE YE BAHUT JAROORI HAI
ReplyDeletesundar,saty abhivyakti .
ReplyDeleteएक बेहतरीन रचना । आप अच्छा लिखती हैं ।
ReplyDeleteमेरे ब्लोग पर स्वागत है।
ब्लॉग परिवार में स्वागत है!लिखते और पढ़ते रहिये...!अपने विचार रखिये..
ReplyDeletenarayan narayan
ReplyDeleteबारिश में भीगती हुई जैसे भीगती है बारिश में धूप
ReplyDeletewah kiran ..aap kavita ki adhnik shalley ko naya rang dene mein sarthak kavya ker rehi hai ...wah kya bimb banta hai ..baarish mein bhigti hue jaise bhigti hai baarish mein dhoop ...wakai etwar ki subah aapko padhker bahut sukun mila ..dhanyawad
kavita ji, kavita bahut sundar aur sateek hai.
ReplyDeletegreat composer , poem striking in the current era as well as eveyone where age is not a limit becuase "DIL TO BACHHA HAI JEE "
ReplyDeleteसभी मित्रों को मेरा हार्दिक धन्यवाद
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