Tuesday, October 27, 2009

जैसे भीगती है बारिश में धूप

ऑरकुट पर

सोलह साल की एक लड़की

बारिश में भीगती हुई खिलखिला रही है

जैसे खिलखिलाती है बारिश में लबालब भरी कोई नदी

की पैड पर अंगुलियों के हल्के से स्पर्श से

रोमांच से भर उठती है उसकी एकाकी दुनिया

भूल जाती है वह

कि ढेरों पानी बह चुका है उसके ऊपर से

भूल जाती है वह कि उसके प्रोफइल में लगा फोटो

उसके यथार्थ से जरा भी मेल नहीं खाता

वह दुबारा लौटती है समय में

इस बार वह जीती है अपनी जिन्दगी अपनी तरह से

वह नित नए दोस्त बनाती है

बहसें करती है/रूठती है/मटकती है

नए-नए रागों और फलसफों से महमहाती हुई

करती है प्रेम ऑरकुट पर

वह नहीं है गुजरे वक्त की औरत एक

यौवन की चढ़ाई चढ़ कबकी नीचे उतर चुकी

नानी-दादी बनने की क्यू में लगी हुई

वह लेती है भरपूर अंगडाई

और अपने रूप पर स्वयं मोहित हो जाती है

आईने को अंगूठा दिखाती हुई ऑरकुट पर

वह सोलह साल की एक लड़की है

बारिश में भीगती हुई जैसे भीगती है बारिश में धूप

('कादम्बिनी' सितम्बर, २००९ में प्रकाशित)

Tuesday, September 15, 2009

मैं यह सिर्फ़ टेस्ट करने के लिए कर रही हूँ। बाद में असली में लिखूंगी।

तब तक के लिए अलविदा!