Tuesday, November 10, 2015
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Thursday, November 5, 2015
तत्सम में छपी कविताएँ (14 अप्रैल 2015)
मुझे एक वसीयत लिखनी थी आने वाली पीढ़ी के नाम
और छुपा देना था उसे कविता की सतरों के भीतर
मुझे बनानी थी हत्यारों की तस्वीर
और लिख देने थे उनके नाम और पते।
कविता में हत्यारों की तस्वीर बनाने की बात करने वाली ये कविता है कविता की सुपरिचित हस्ताक्षर किरण अग्रवाल की। सिर्फ़ एक अनुरोध पर उन्होने तत्सम के लिये ये कविताएँ उपल्बध करवा दी हैं और अब ये आपके हवाले...
- प्रदीप कान्त
नेट पर...
नेट पर एक पूरी दुनिया है
हर क्षण रूप बदलती हुई
गति और रोमांच से भरपूर
जाति, धर्म और वर्ण से परे
जिसके भीतर कोई भी प्रविष्ट हो सकता है
निःषंक-निर्भीक-निर्निवाद
नेट पर एक पूरी दुनिया है
और इस दुनिया के एक हिस्से में
बंद है मेरा प्रोफाइल
जिसे खोल सकता है
की बोर्ड पर किसी की अंगुलियों का हल्का सा दबाव मात्र
संसार के किसी भी कोने से
किसी भी समय
नेट पर एक पूरी दुनिया है
इस दुनिया के एक हिस्से में बंद है मेरा प्रोफाइल
इस प्रोफाइल में दर्ज है मेरा नाम
मेरा पता, मेरी उम्र, मेरी योग्यता
मेरी पसन्द-नापसन्द, यात्राएँ, उपलब्धियाँ
मेरे अनुभव, मेरी जरूरतें, मेरा कॉन्टेक्ट नम्बर और ई-मेल आई डी
सब कुछ मौजूद है वहाँ मेरे बारे में
लेकिन मैं कहाँ हूँ वहाँ सोचती हूँ मैं
000
अपने से मिलने
मैं अपने से मिलने गई थी उसके पास
और उसे लगा मैं उससे मिलने आयी हूँ
मैं अपने से मिलने गई थी उसके पास
और उसने मुझे पहचानने से इंकार कर दिया
मैं अपने से मिलने गई थी उसके पास
लेकिन वहाँ तो नो इंटरी का बोर्ड लगा था
फिलहाल लौट आयी हूँ मैं वापस
लेकिन जल्दी ही पुनः जाऊँगी उसके पास
अपने से मिलने
000
कविता के इलाके में
कविता के इलाके में
पुलिस से भाग कर नहीं घुसी थी मैं
वहाँ मेरा मुख्य कार्यालय था
जहाँ बैठकर
जिन्दगी के कुछ महत्वपूर्ण फैसले करने थे मुझे
यह सच है तब मैं हाँफ रही थी
मेरी आँखौं में दहशत थी
पर कोई खून नहीं किया था मैंने
लेकिन मैं चश्मदीद गवाह थी अपने समय की हत्या की
जिसे जिन्दा जला दिया गया था धर्म के नाम पर
मैं पहचानती थी हत्यारों को
और हत्यारे भी पहचान गये थे मुझे
वे जो ढलान पर दौड़ते हुए मेरे पीछे आये थे
वह पुलिस नहीं थी
पुलिस की वर्दी में वही लोग थे वे
जो मुझे पागलों की तरह ढूँढ़ रहे थे
जो मिटा देना चाहते थे हत्याओं के निशान
किसी तरह उन्हें डॉज़ दे
घुस ली थी मैं कविता के इलाके में
और अब एक जलती हुई शहतीर के नीचे खड़ी हाँफ रही थी
जो कभी भी मेरे सिर पर गिर सकती थी
दंगाई मुझे ढूँढ़ते हुए यहाँ तक आ पहुँचे थे
मुझे उनसे पहले ही अपने मुख्य कार्यालय पहुँचना था
और निर्णय लेना था कि किसके पक्ष में थी मैं
मुझे एक वसीयत लिखनी थी आने वाली पीढ़ी के नाम
और छुपा देना था उसे कविता की सतरों के भीतर
मुझे बनानी थी हत्यारों की तस्वीर
और लिख देने थे उनके नाम और पते।
000
हाथ
आज पहली बार अपने हाथों की उभरती नसों पर निगाह पड़ी मेरी
और मैं भयभीत हो गई
ये वे हाथ थे जिन्हें देखकर रश्क होता था मेरी सहपाठिनों को
ये वे हाथ थे जिनपर टिक जाती थीं पुरूषों की निगाहें
ये वे हाथ थे जिन्हें एक बार मेरे जर्मन डॉक्टर ने यकबयक
(जिसके पास मैं चेकअप के लिये जाती थी अक्सर)
अपने हाथों में लेकर कहा था..
Ihr Händesind sehr schön *
और मेरे दिल की धड़कन सहसा बंद हो गई थी
और डॉक्टर घबड़ाकर मेरी नब्ज ढूँढ़ने लगा था
आज पहली बार अपने उन हाथों की उभरती नसों पर निगाह पड़ी मेरी
और अपने निरर्थक भय पर हंसी आयी
इन हाथों के पास अब सहारा था कलम का
जिसका इस्तेमाल कर सकते थे वे बखूबी खुरपी की तरह
और बंदूक की तरह भी
वे लिख सकते थे इससे प्रेम पत्र
और कर सकते थे हस्ताक्षर शान्ति प्रस्तावों पर
वे एक पूरी दुनिया को बदलने का माद्दा रखते थे
*तुम्हारे हाथ बहुत खूबसूरत हैं
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